New Delhi । संविधान की यात्रा पर चर्चा के दौरान राज्यसभा में नेता सदन जगत प्रकाश नड्डा ने कहा कि यदि हम वेद और पुराने शास्त्रों को देखने पर उनमें सभा, समिति, संसद जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है। यह इस बात को बताता है कि चर्चा, बहस जैसी चीजें हमारी संस्कृति में रही हैं। राज्यसभा में नेता सदन नड्डा ने कहा कि संविधान की मूल प्रति में हमें अजंता एलोरा, कमल के फूल की छाप मिलती है।
कमल का फूल इस बात को प्रतिलक्षित करता है कि हम कीचड़ में से निकल करके आजादी की लड़ाई लड़कर नई सुबह के साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं।उन्होंने कहा कि यदि पिछले 75 साल की यात्रा पर बात करें तब पता लगता है कि बाबा साहब अंबेडकर कितने दूरदर्शी थे। देश को जोड़ने का काम तब के गृहमंत्री सरदार पटेल को दिया गया। उन्होंने 562 रियासतों को जोड़ा। एक जम्मू कश्मीर की रियासत का जिम्मा प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने लिया था। तब जम्मू कश्मीर में आर्टिकल 370 लगाया गया। इसका नतीजा यह हुआ कि संसद द्वारा पारित किए गए 106 कानून जम्मू कश्मीर में लागू नहीं होते थे। तभी जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आर्टिकल 370 का विरोध किया था। जनसंघ के नेता मुखर्जी ने कहा था कि एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चल सकते है। उन्होंने बलिदान दिया और श्रीनगर की जेल में संदिग्ध स्थिति में उन्होंने अंतिम सांस ली।
नड्डा ने कहा कि पश्चिमी पाकिस्तान से आए व्यक्ति भारत में प्रधानमंत्री और उप प्रधानमंत्री बने। इसमें मनमोहन सिंह, आई के गुजराल और लाल कृष्ण आडवाणी शामिल थे। लेकिन पीओके से आया हुआ व्यक्ति जम्मू कश्मीर की पंचायत का चुनाव तक नहीं लड़ सकता था, यह आर्टिकल 370 की देन थी। उन्होंने कहा कि 5 अगस्त 2019 को आर्टिकल 370 को इतिहास बना दिया गया। मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं कि उनकी सूझबूझ के कारण आज जम्मू कश्मीर भारत का अभिन्न अंग बन गया। नड्डा ने कहा कि अगले वर्ष 25 जून 2025 को आपातकाल लगाने के 50 वर्ष पूरे हो जाएंगे। इस दिन को लोकतंत्र विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाएगा। कांग्रेस यदि आपातकाल को गलत मानती है तब कांग्रेस भी इसमें शामिल हो, इस बात का हम आह्वान करते हैं।
विपक्ष पर हमलावर नड्डा ने कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर आपका योगदान है। उन्होंने कहा कि चीन ने भारत की 38,000 वर्ग किलोमीटर भारत भूमि कब्जा कर ली, क्योंकि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने रक्षा तैयारियों की अनदेखी की थी।