अफगानिस्तान से मिलने वाला पानी भी रोकेगा भारत
New delhi । भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर मुत्ताकी के बीच 15 मई की शाम हुए फोन कॉल ने पाकिस्तान में कुछ वैसी ही खबलबली मचाई है जैसी ऑपरेशन सिंदूर में हुई भारतीय स्ट्राइक्स ने मचाई थी।
भारत और अफगानिस्तान के बीच राजनीतिक संवाद ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल समझौते को ठंडे बस्ते में डालने के भारतीय फैसले से परेशान पाकिस्तान को और ज्यादा पस्त कर दिया है। ये परियोजना पाकिस्तान में पानी की किल्लत को और भी बढ़ा सकती है।
सूत्रों के मुताबिक जयशंकर और मुत्ताकी के बीच अफगानिस्तान में भारतीय मदद वाली विकास परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर रजामंदी हुई है, इसमें लालंदर की वो शहतूत बांध परियोजना भी शामिल है, जो काबुल नदीं पर बनाई जानी है।
दोनों देशों के बीच इसे लेकर समझौता तो फरवरी 2021 में हुआ था, लेकिन काबुल में हुए सत्ता बदल ने इसपर ब्रेक लगा दिया था। पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुए भारतीय राजनयिक टीम के काबुल दौरे ने इस परियोजना की सुगबुगाहट को एक बार फिर हवा दे दी।
दरअसल, काबुल नदी पर बनने वाली यह परियोजना अफगानिस्तान की राजधानी काबुल और मुल्क में रहने वाले करीब 20 लाख लोगों के लिए साफ पेयजल मुहैया कराएगी। इस शहतूत बांध परियोजना के लिए भारत 236 मिलियन डॉलर की वित्तीय और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराएगा।
करीब तीन साल में पूरी होने वाली इस परियोजना में अफगानिस्तान की 4,000 हेक्टेयर भूमि को सिंचित किया जाएगा।शहतूत बांध परियोजना से बढ़ेगी पाक की मुश्किल हालांकि, इस बांध परियोजना में पाकिस्तान की परेशानी का सबब है काबुल नदी की भौगोलिक स्थिति। ये नदी हिंदू कुश पहाड़ों से निकलती है और पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में दाखिल होती है।
इस बांध के बनते ही पाकिस्तान के सामने सबसे बड़ा और सीधा खतरा होगा अपने खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के लिए पानी की जरूरतों को पूरा करना। काबुल नदी सिंधु जल बेसिन का हिस्सा है और पाकिस्तान के लिए भी खासी अहम है।
पाकिस्तान की घबराहट इसलिए भी बढ़ जाती है, क्योंकि अफगानिस्तान के साथ उसकी कोई औपचारिक जलसंधि नहीं है। ऐसे में अफगानिस्तान न तो शहतूत बांध परियोजना को लेकर पाकिस्तान के प्रति जवाबदेह है और ना ही किसी समझौते से बंधा है।