Kanpur ।ममतामयी मी श्री झुझुनूवाली श्री राणीसती दादी जी के आर्शीवाद से अमृतमय श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिन डॉ० संजय कृष्ण “सलिल” जी ने बताया कि मानव देह चौरासी लाख योनियों के बाद प्राप्त होती है।
हमें इसे प्राप्त करके प्रभु को प्रत्येक क्षण स्मरण करते रहना चाहिये। यह शरीर खाने-पीने के लिये नहीं मिला है। यह सब क्रिया तो पषुओं में भी होती है परन्तु उनमें विवेक नहीं होता, जन्म लेने का लाभ यही है कि अन्त में नारायण की स्मृति बनी रहे, यह लाभ जीवन में अभ्यास से होता है। हमें मृत्यु को याद करते रहना चाहिए।
जब तक हम अपने खान-पान एवं व्यवहार पर ध्यान नहीं देंगे तब तक हृदय शुद्ध नहीं होगा। यहाँ तक की हृदय शुद्ध होता है वहीं पर प्रभु कृपा करते हैं।।
आगे “सलिल” महाराज जी ने बताया राजा परीक्षित को मृत्यु का भय था। राजा सब कुछ त्याग करके गंगा तट पर आते हैं और बड़े-बड़े ऋषि मुनि आते हैं। शुकदेव जी राजा को भागवत सुनते हैं राजा व जीव को प्रभु का ध्यान रखना चाहिये। ध्यान धारण अष्टयाम योग क्रिया के द्वारा मन एकाग्र करना चाहिये।
उपरोक्त कार्यक्रम में मुख्य श्रोतागण सर्व श्री काशीनाथ तुलस्यान, रोहित तुलस्यान, अविनाश खेमका, आनन्द तुलस्यान, अनिल अग्रवाल, बाल किशन देवड़ा, अतुल अग्रवाल, वीरेन्द्र अग्रवाल,मोनिका तुलस्यान, आशा केडिया, अंजना अग्रवाल, प्रदीप केडिया, मोनिका खेमका इत्यादि उपस्थित रहें।