Mumbai । केंद्र सरकार ने चार वर्ष पहले अनुमान लगाया था कि देश में घुसपैठ करने वाले बांग्लादेशी नागरिकों की संख्या कम से कम 5 से 6 करोड़ थी। संभावना है कि इनमें से कम से कम 50 लाख से अधिक घुसपैठिये महाराष्ट्र में ही बस गए हों। इसलिए, महाराष्ट्र को घुसपैठियों से सबसे अधिक खतरा होने की संभावना है। पिछले एक-दो वर्षों में मुंबई, ठाणे, पुणे, पिंपरी-चिंचवड़ आदि क्षेत्रों में पकड़े गए अधिकांश बांग्लादेशी घुसपैठियों के पास पीले या नारंगी रंग के राशन कार्ड पाए गए हैं।
इसका उपयोग कर ये लोग सरकारी योजना के तहत मुफ्त खाद्यान्न योजना का भी लाभ उठाते पाए गए हैं। ऐसे घुसपैठिये अब ग्रामीण क्षेत्रों में भी दिखने लगे हैं। उन्हें राशन कार्ड भी मिलने लगे हैं। इसका मतलब यह है कि सरकारी और प्रशासनिक व्यवस्था में लचरपन के कारण राज्य के अस्तित्व पर दिन-प्रतिदिन ऐसी चिंगारिया सुलगने लगी हैं। इसलिए सरकार से इसके लिए विशेष अभियान शुरू करने की मांग की जा रही है।
– आप्रवासी या घुसपैठिया?
आज आप राज्य के औद्योगिक क्षेत्रों में कहीं भी चले जाएं, आप पाएंगे कि वहां विभिन्न कारखानों में प्रवासी श्रमिकों व मजदूरों की संख्या स्थानीय श्रमिकों व मजदूरों से कहीं अधिक है। हालांकि, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि ये श्रमिक और मजदूर प्रवासी नहीं, बल्कि बांग्लादेशी घुसपैठिए हों। चूंकि ये लोग न्यूनतम वेतन पर काम करने को तैयार रहते हैं, इसलिए कंपनी मालिक भी इन्हें पहली प्राथमिकता देते हैं। समय के साथ, यही समूह अपने भाइयों को वहां आमंत्रित करते हैं और उनके लिए वहां कहीं रोजगार ढूंढ़ देते हैं। आज राज्य के औद्योगिक क्षेत्रों में यूपी और बिहार के लोग काम कर रहे हैं, इसकी गहन जांच की जरूरत है।
क्योंकि, इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि इनमें से अधिकांश लोग बांग्लादेशी घुसपैठिए हैं। इनके कारण बड़ी संख्या में स्थानीय बेरोजगार युवाओं से रोजगार के अवसर छिन रहे हैं। इसलिए, औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों की गहन जांच की आवश्यकता है।
– ग्रामीण कृषि मजदूर!
आजकल, राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों, विशेषकर पश्चिमी महाराष्ट्र में, कृषि कार्यों में लगे प्रवासी पुरुषों और महिलाओं की बड़ी संख्या में आमद हो रही है। गन्ना की खेती, बाग-बगीचे, अंगूर के बाग-बगीचे सभी जगह प्रवासी मजदूरों का बोलबाला है। इन लोगों को आज भी यूपी-बिहारी कहकर हाशिए पर रखा गया है लेकिन इन लोगों की समग्र शारीरिक भाषा, खान-पान और वेशभूषा उत्तर भारतीय लोगों से नहीं, बल्कि बंगाली मूल निवासियों से मिलती जुलती है।
शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक, आजकल होटलों में काम करने वाले अधिकांश कर्मचारी हिंदी भाषी हैं। हालाँकि, उनकी हिन्दी उत्तर भारतीय की बजाय बंगाली लगती है। दिन भर आम जनता से बात करते समय वे जिस भाषा का प्रयोग करते हैं और अपने स्वयं के समुदाय से बात करते समय जिस भाषा का प्रयोग करते हैं, उसमें बहुत अंतर होता है। कई लोग बंगाली और उर्दू भी बोलते नजर आते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न भाषा-शैली का ज्ञान न होने के कारण आज भी इन लोगों की पहचान उत्तर भारतीय के रूप में ही की जाती है। इसलिए इन सबकी गहन जांच की जरूरत है।
– अवैध कारोबार का बंगाली कनेक्शन
पश्चिम बंगाल का शहर मालदा इस क्षेत्र में अवैध कारोबार की राजधानी के रूप में जाना जाता है। इस स्थान से नकली मुद्रा, अफीम, गांजा, हशीश, ब्राउन शुगर आदि सहित अनेक मादक पदार्थ खुलेआम तस्करी के माध्यम से लाए जाते हैं। यहां से घातक हथियारों की तस्करी भी बड़े पैमाने पर की जाती है। पिछले कुछ वर्षों में देश व प्रदेश में कई स्थानों पर मादक पदार्थ व हथियारों का जखीरा जब्त किया गया है। इसमें बड़ी संख्या में बंगाली लोग शामिल पाए गए हैं। महाराष्ट्र में भी पिछले कुछ वर्षों में नशीले पदार्थों और खतरनाक हथियारों की बिक्री और उपयोग में वृद्धि हुई है। इसके मद्देनजर इस सबका मालदा कनेक्शन जांचने की जरूरत है।