शब्द कीर्तन और गुरमत विचारों के मध्य शुरू हुई लंगर सेवा
Kanpur। शब्द कीर्तन एवं ” बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, ” वाहे गुरू जी का खालसा, वाहे गुरू जी की फतेह ” के उद्घोष के मध्य जगत गुरू साहिब श्री गुरु नानक देव जी महाराज के पावन प्रकाश उत्सव के तीन दिवसीय समारोह के दूसरे दिन भारी संख्या में श्रद्धालु संगत ने लंगर तैयारी की सेवा प्रारम्भ की, प्रातः काल से ही बडी संख्या में श्रद्धालु संगत अपनी सामर्थ्य के अनुरूप लंगर में अपना योगदान देने के लिए मोतीझील पहुंचने लगी थी, विशाल मंच पर भव्य पालकी में विराजमान जुगो जुग अटल साहिब श्री गुरू ग्रन्थ साहिब के समक्ष संगत माथा टेककर अपनी श्रद्धा अर्पित कर गुरुवाणी कीर्तन से निहाल हुई।

लंगर तैयारी सेवा में “सतगुरु की सेवा सफल है, जे को करे चित्त लाए” को चरितार्थ कर रहे थे। प्रातःकाल दीवान की अरंभता भाई भूपिंदर सिंह गुरदासपुरी ने “जित्थे बाबा पैर धरे, पूजा आसन थापन सोआ” “धन धन गुरु नानक समदर्शी” का गायन किया, भाई सुरिंदर सिंह भाई मोहन सिंह शास्त्री नगर वालों ने भाई जसकरन सिंह जी पटियाला वाले हजूरी रागी श्री दरबार साहिब अमृतसर ने “मेरे साहिबा मेरे साहिबा कौन जाते गुण तेरे” व इक बाबा अकाल मूरत, दूजा रबाबी मर्दाना” का कीर्तन गायन कर संगत को निहाल किया तो पंडाल”बोले सो निहाल, सत श्री अकाल” के जयकारों से गुंजायमान हो गया।
लंगर तैयारी की सेवा मोहन सिंह झास, ज्ञानी मदन सिंह, जसवंत सिंह भाटिया, गुरदीप सिंह गांधी, टीटू सागरी की देखरेख में प्रातःकाल से ही आरंभ हुई जहां दाल, सब्जी के भंडारण से लेकर उनकी साफ सफाई, दाल, सब्जी, रोटी आदि पकाने की प्रक्रिया दिन भर चलती रही, ज्ञात हो की लगभग डेढ़ से दो लाख श्रद्धालू गुरुपर्व पर प्रसाद रूपी लंगर छकेगे। जिसके लिए कई कुंटल दाल, आलू, गोभी, आटा सहित मसालों का प्रयोग किया जा रहा है

कार्यक्रम संचालन की सेवा स. महेंद्र सिंह भाटिया जैक वालों के द्वारा निभाई गई। दीवान एवं लंगर सेवा के कार्य में स. हरविंदर सिंह लॉर्ड सहित सुखविंदर सिंह भल्ला लाडी, हरमिंदर सिंह लोंगोवाल, मीतू सागरी, करमजीत सिंह, दया सिंह गांधी, अमनजोत सिंह रौनक, सुरिंदर सिंह चावला कालू, जसबीर सिंह सलूजा, सतनाम सिंह सूरी, मनमीत सिंह राजू पहलवान, जयदीप सिंह राजा, राजू खण्डूजा आदि ने सेवा कार्य में अपनी अपनी भूमिका निभा रहे थे। यंगमैन सिख एसोसिएशन के वॉलंटियर एसोसिएशन अध्यक्ष जसवीर सिंह सचदेवा की सरपरस्ती में संगत के जोड़े (जूते/ चप्पल) सम्भालने की सेवा निभा रहे थे। प्रातःकाल की ही भांति रात्रि में भी कथा कीर्तन के दीवान में प्रचारक एवं रागी जत्थे संगत को गुरुवाणी के साथ जोड़ेंगे।


