कई शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से हजार गुना अधिक
गैस चैम्बर में तब्दील हो रहे शहर
-देश में पंजाब, मप्र, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में जलाई जाती है सबसे ज्यादा पराली
-उत्तर प्रदेश में 2,375, राजस्थान में 1,906, हरियाणा में 1,036 और दिल्ली में सिर्फ 12 पराली जलाने के मामले दर्ज
New Delhi । राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और मप्र की राजधानी भोपाल सहित देश के सैकड़ों शहरो में बढ़ता प्रदूषण थमने का नाम नहीं ले रहा। हालत यह हैं कि बढ़ते प्रदूषण से शहर गैस चैम्बर में तब्दील हो गई है। आंकड़ें के मुताबिक कई शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा तय मानकों से हजार गुना अधिक पहुंच रहा है। जिसे जानलेवा माना जा रहा है।
दिल्ली में तो वायु गुणवत्ता सूचकांक यानी एक्यूआई 400 के पार लगातार जा रहा है। यदि नवंबर की बात करें तो इस महीने एक भी दिन ऐसा नहीं रहा जब वायु गुणवत्ता स्वास्थ्य के लिहाज से सुरक्षित रही हो। वहीं दीवाली के बाद से तो दिन-प्रतिदिन स्थिति और खराब होती जा रही है। ऐसा नहीं है कि देश में बढ़ता प्रदूषण सिर्फ राजधानी दिल्ली तक सीमित है। दिल्ली की तरह ही चंडीगढ़ में भी प्रदूषण का स्तर आपात स्थिति तक पहुंच गया है, जहां एक्यूआई 412 रिकॉर्ड किया गया है। वहीं कल सूचकांक 372 दर्ज किया गया था। दिल्ली-चंडीगढ़ के बाद देश में सहरसा (377), गाजियाबाद (356), हापुड (348), नोएडा (347) आदि 11 शहरों में स्थिति बेहद खराब है। इन शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 300 के पार है। बता दें कि देश के सबसे प्रदूषित शहरों में भिवाड़ी, अमृतसर, दुर्गापुर, गुरूग्राम, बैरकपुर, पंचकुला, और रूपनगर शामिल हैं। हालांकि देश में बेहद खराब हवा वाले शहरों की संख्या में करीब 58 फीसदी की गिरावट आई है।
घुटन भरे ग्रे स्तर के पार एयर क्वालिटी
भोपाल का वायु गुणवत्ता सूचकांक 315 को पार कर गया। यह रेड लाइनिंग बहुत खराब पर था। प्रदूषण के इतने उच्च स्तर के संपर्क में लंबे समय तक रहने से गंभीर श्वसन संबंधी बीमारी हो सकती है। विशेषज्ञों ने बताया कि साल के इस समय में वायु प्रदूषण न केवल पटाखों के कारण बढ़ता है, बल्कि ठंड से बचने के लिए लोग सडक़ किनारे अलाव भी जलाते हैं। कई लोग टायर, रबर और प्लास्टिक का कचरा जलाते हैं, इसके कारण भी वातावरण जहरीला होता जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 16 नवंबर को जारी रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 249 में से 37 शहरों में हवा बेहतर (0-50 के बीच) रही। वहीं 44 शहरों में वायु गुणवत्ता संतोषजनक (51-100 के बीच) है, गौरतलब है कि 15 नवंबर यह आंकड़ा 55 दर्ज किया गया था। 98 शहरों में वायु गुणवत्ता मध्यम (101-200 के बीच) रही। दूसरे शहरों की तुलना में दिल्ली (424) में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है, जहां एक्यूआई 450 के करीब पहुंच गया है। इसका मतलब दिल्ली में आज भी हवा ‘गंभीर’ बनी हुई है, जो लोगों को बेहद बीमार बना देने के लिए काफी है। दिल्ली के अलावा फरीदाबाद में इंडेक्स 270, गाजियाबाद में 356, गुरुग्राम में 318, नोएडा में 347, ग्रेटर नोएडा में 264 पर पहुंच गया है। देश के अन्य प्रमुख शहरों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो मुंबई में वायु गुणवत्ता सूचकांक 138 दर्ज किया गया, जो प्रदूषण के ‘मध्यम’ स्तर को दर्शाता है।
पराली जलाने में मप्र से पंजाब को पीछे किया
इस साल सर्दी का मौसम अभी शुरू ही हुआ है, लेकिन प्रदूषण पहले ही शुरू हो चुका है। पराली जलाने के मामले में मप्र ने पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। 14 नवंबर तक की रिपोर्ट के अनुसार, पंजाब में 7,626 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि मध्य प्रदेश में 8,917 मामले सामने आए हैं। यह पहला मौका है, जब मप्र ने पराली जलाने के मामलों में पंजाब को पीछे छोड़ दिया है। 2020 से जब से मप्र में पराली जलाने के मामलों की गिनती शुरू हुई थी, तब से यह पहली बार हुआ है कि राज्य ने पंजाब को मात दी है। पिछले चार वर्षों में पंजाब ने कुल 2,99,255 पराली जलाने के मामले दर्ज किए, जबकि मध्य प्रदेश में इन चार वर्षों में कुल 55,462 मामले दर्ज हुए हैं। इस आंकड़े को देखकर यह कहा जा सकता है कि पंजाब ने पराली जलाने के मामलों को नियंत्रण में रखने में बड़ी सफलता हासिल की है। पराली जलाने के मामलों में पंजाब, मप्र, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बाद हरियाणा का स्थान है। हालांकि, यदि पिछले छह वर्षों का आंकड़ा देखा जाए, तो पंजाब और मप्र के बाद हरियाणा तीसरे स्थान पर है। इस साल 14 नवंबर तक उत्तर प्रदेश में 2,375, राजस्थान में 1,906, हरियाणा में 1,036 और दिल्ली में सिर्फ 12 पराली जलाने के मामले दर्ज हुए हैं। इन छह राज्यों में कुल 21,866 पराली जलाने के मामले रिपोर्ट किए गए हैं।
फेफड़ों पर कहर बरपाने वाली हवा
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि साल के इस समय में पंजाब और दिल्ली से हवाएं राज्य में चलती हैं, जिससे मध्य प्रदेश के शहरों का एक्यूआई 20 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। दूसरा कारण यह है कि प्रदूषक जमीन के करीब आ जाते हैं। सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम) फेफड़ों पर कहर बरपाता है। इसमें पीएम 2.5 सबसे ज्यादा हानिकारक है। धूल और निर्माण के कारण पीएम10 का स्तर बढ़ जाता है। डंपर द्वारा रेत के बादल को उड़ाते हुए देखना आम बात है जो विशाल वाहन को घेर लेता है। यही हवा हम सांस लेते हैं।
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