अखिलेश ने ड्राफ्ट पढ़े बिना खामियां गिनाना शुरु कीं
कांग्रेस ने कहा भाजपा अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश में लगी
Lucknow । उत्तर प्रदेश में अब एक देश एक चुनाव पर राजनीति शुरू हो गई है। मायावती की पार्टी बसपा जहां इसका समर्थन कर रही है। वहीं कांग्रेस और समाजवादी पार्टी को एक देश-एक चुनाव का सिस्टम पंसद नहीं आ रहा है। अखिलेश ने वन नेशन-वन इलेक्शन के खिलाफ जनमत तैयार करने की बात शुरु कर दी है। इसके लिए पार्टी द्वारा गांव-गांव अभियान चलाया जाएगा। पार्टी अध्यक्ष और पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि एक देश-एक चुनाव सही मायनों में एक अव्यावहारिक है, क्योंकि कभी-कभी सरकारें अपनी समय अवधि के बीच में भी अस्थिर हो सकती हैं।
उस स्थिति में क्या वहां की जनता बिना लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व के रहेगी? इसके लिए संवैधानिक रूप से चुनी सरकारों को बीच में ही भंग करना होगा, जो जनमत का अपमान होगा। मगर इस बीच सवाल यह है कि क्या अखिलेश ने वन नेशन-वन इलेक्शन के लिये तैयार किया गया ड्राफ्ट पढ़ लिया है या फिर बिना पड़े ही ऐसी बातें अपनी राजनीति चमकाने के लिए जुट गए हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अखिलेश यादव जो खामियां और समस्याएं गिना रहे हैं उस पर मोदी सरकार ने मंथन नहीं किया होगा,ऐसा असंभव लगाता है।
सपा सूत्रों के मुताबिक मामले में अखिलेश ने पार्टी की लाइन स्पष्ट कर दी है। इस मुद्दे को लेकर पार्टी लोगों के बीच जाएगी ताकि भाजपा सरकार पर दबाव बना सके। उधर, यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि एक देश-एक चुनाव के द्वारा भाजपा अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश में लगी। मोदी व यूपी सरकार हर मोर्चे पर फेल है।
भाजपा का झूठ उजागर हो चुका है। बता दें कांग्रेस और सपा से इतर बसपा सुप्रीमों मायावती एक देश-एक चुनाव का समर्थन कर चुकी हैं। बीते सितंबर में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा प्रस्ताव को मंजूरी दिए जाने के बाद उन्होंने कहा था कि इस पर उनकी पार्टी का स्टैंड सकारात्मक है। लेकिन इसका उद्देश्य देश व जनहित में होना जरूरी है। माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर बसपा अपने पुराने स्टैंड पर ही कायम रहेगी।
वहीं लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो. संजय गुप्ता कहते हैं कि पूर्व में कांग्रेस के समय में भी एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था को लागू करने के प्रयास हुए थे। आज भले ही विपक्ष इस व्यवस्था को संविधानी ढांचे के विरुद्ध बताए, लेकिन ऐसा है नहीं। विपक्ष यह कह रहा है कि अगर कोई सरकार दो साल बाद गिर जाती है, तब क्या होगा। केंद्र इसके लिए नियमों में संशोधन भी करेगी। इसके लागू होने से विकास कार्य को गति मिलेगी।
लखनऊ विश्वविद्यालय के ही प्रो. सौरभ मालवीय का भी कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने से देश का खर्च और संसाधनों की बचत होगी। साथ ही राजनीतिक पार्टियों को भी कार्य में सुविधा होगी।
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