हर रोज सिविल मुकदमों को क्रिमिनल केस में बदल रहे
Ghaziabad। सिविल मामलों को बार-बार आपराधिक मामलों में बदलने पर उत्तर प्रदेश पुलिस की खिंचाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि यह गलत है, जो यूपी में हो रहा है।
हर रोज सिविल मुकदमों को आपराधिक मामलों में बदला जा रहा है। यह बेतुका है, सिर्फ पैसे नहीं देने को अपराध नहीं बनाया जा सकता, ये कानून के शासन का पूरी तरह ब्रेकडाउन है।सुप्रीम कोर्ट ने कहा अब जो भी मामला आएगा, हम पुलिस पर जुर्माना लगाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में आपराधिक ट्रायल पर रोक भी लगाई है।
साथ ही उत्तर प्रदेश के डीजीपी और जांच अफसर को भी तलब किया है और उसने जवाब मांगा है।
पूरा मामला ग्रेटर नोएडा में चेक बाउंस का है
यह पूरा मामला ग्रेटर नोएडा में पैसे के लेनदेन के एक मामले को पुलिस ने सिविल केस की जगह क्रिमिनल केस बनाते हुए चार्जशीट दाखिल कर दी थी।
याचिकाकर्ता का कहना था कि पुलिस ने पैसे लेकर मामले को क्रिमिनल बना दिया। पुलिस ने सिविल मुकदमे को आपराधिक मामले में तब्दील करने के बाद समन जारी किया और आरोप पत्र दाखिल किया। याचिकाकर्ता ने इसके खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि पुलिस ने मामले को बदलने के लिए रिश्वत ली।
कोर्ट यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश के वकील सिविल अधिकार क्षेत्र को भूल गए हैं। यह कानून के शासन का पूरी तरह से पतन दिखाता है।
यह चार्जशीट दाखिल करने का तरीका नहीं
कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि यह बेतुका है, सिर्फ पैसे न देने को अपराध नहीं बनाया जा सकता। मैं जांच अधिकारी से कहूंगा कि वह गवाह के कठघरे में आएं। जांच अधिकारी को गवाह के कठघरे में खड़े होकर अपराध का मामला बनाने दें।
हम उसे निर्देश देते हैं, उसे सबक सीखने दें, यह चार्जशीट दाखिल करने का तरीका नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह अजीब है, उत्तर प्रदेश में यह आए दिन हो रहा है।
अदालत ने चेतावनी दी कि अगर भविष्य में इसी तरह की याचिकाएं दायर की जाती हैं तो वह हर्जाने का आदेश देगी। अदालत ने एक मामले में आपराधिक मुकदमा चलाने पर रोक लगा दी और उत्तर प्रदेश के पुलिस प्रमुख प्रशांत कुमार और जांच अधिकारी को 2 सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा।
यह पहली बार नहीं है जब मुख्य न्यायाधीश ने सिविल मामलों को आपराधिक मामलों में बदलने की बढ़ती प्रवृत्ति को चिह्नित किया है। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने कहा था कि यह प्रथा कुछ राज्यों में बड़े पैमाने पर है।
उन्होंने कहा था कि सिविल मामलों को बार-बार आपराधिक मामलों में बदलने से न्यायपालिका पर ऐसे मामलों का बोझ पड़ता है, जिन्हें सिविल अधिकार क्षेत्र द्वारा निपटाया जा सकता है।