Kanpur ।श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल द्वारा आयोजित श्री राम कथा के पंचम दिवस में बोलते हुए आचार्य पीयूष जी ने कहा कि भरत का प्रेम जो प्रभु श्रीराम के प्रति था, ऐसा प्रेम आज के समाज में एक भाई के प्रति दूसरे भाई का होना चाहिए। शास्त्रों में भी कहा गया है कि भरत जैसा भाई न कभी हुआ और शायद न कभी हो। भरत ने राजगद्दी स्वीकार नहीं की, उन्होंने कहा कि यह सिंहासन राजाराम की अमानत है। वे प्रभु श्रीराम को चित्रकूट से अयोध्या वापस लाने के लिए गए | जहाँ राम रुके हुए थे। परन्तु श्रीराम ने वचनबद्ध होने के कारण अयोध्या लौटने से इन्कार कर दिया। इस पर भरत ने श्रीराम की चरण पादुकाओं को ले जाकर राजसिंहासन पर विराजमान करके चौदह वर्षों तक बिना प्रभु श्रीराम के राजपाठ चलाया ।
श्री राम कथा में मुख्य यजमान विजय नारायण तिवारी “मुकुल” एवं ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल के उपसभापति एवं रामकथा के संरक्षक पं. रमाकान्त जी मिश्र जी एवं सुमन जी, संयोजक योगेन्द्रनाथ भार्गव , अभिनव नारायण तिवारी, राकेश राम त्रिपाठी,हरिभाऊ खाण्डेकर, सुभाष चन्द्र त्रिपाठी, डॉ सरस्वती अग्रवाल प्रधानाचार्या श्रीमती मन्जू शुक्ला, श्रीमती ज्योति मिश्रा, एवं अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे।
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