युद्ध को लेकर दोनों देशों की जनता में सोच में कितना अंतर
New Delhi । भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर के बाद दोनों देशों की जनता की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं जिसमें जमीन-आसमान का फर्क नजर आ रहा है। जहां पाकिस्तान में लोग पटाखे छोड़कर जश्न मना रहे हैं, वहीं भारत के लोग चिंता और सवाल उठा रहे हैं। क्या भारत ने जल्दबाजी में युद्ध रोका है?
क्या पाकिस्तान को एक और मौका देना चाहिए था? ऐसे सवाल सोशल मीडिया और जनचर्चा बने हुए हैं। इससे साफ है कि युद्ध, राष्ट्रवाद और लोकतंत्र को लेकर भारत और पाकिस्तान की सोच में गहरा अंतर है।
पाकिस्तान में हमेशा देखा गया है कि वहां की सरकार और सेना युद्ध की हार को भी जीत की तरह पेश करती है। 1971 की जंग में जब पाकिस्तान ने 93 हजार सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण किया और इसके बाद बांग्लादेश वजूद में आया। तब भी वहां की किताबों और मीडिया में यह प्रचार किया था कि पाकिस्तान ने भारत को टक्कर दी और जंग में सम्मानपूर्वक लड़ाई लड़ी। यह प्रवृत्ति आज भी जारी है।
पाकिस्तानी सेना अपनी साख बनाए रखने के लिए भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काती है और लोगों को भ्रमित करती है।आर्थिक तंगी, राजनीतिक अस्थिरता और सैन्य दबाव के बीच पाकिस्तान के पास युद्ध जारी रखने की क्षमता नहीं थी। ऐसे में सीजफायर उनके लिए राहत का सौदा रहा।
वहां की सरकार और सेना इसे भारत पर राजनीतिक दबाव डालकर हासिल की गई जीत के रूप में दिखा रही है। इससे जनता का ध्यान मूल समस्याओं से हटता है। भारतीय रणनीति का फोकस आतंकवादियों के ठिकानों पर सटीक और सीमित हमलों पर होता है, ताकि नागरिकों को नुकसान न पहुंचे और क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे।
भारत की परमाणु नीति नो फस्ट यूज पर आधारित है, यानी हम तब तक हमला नहीं करेंगे जब तक कोई हमें उकसाए नहीं। यही कारण है कि भारत में सेना की सफलता के बावजूद लोग सरकार से जवाब मांगते हैं- “सीजफायर क्यों किया?” “क्या पाकिस्तान को सबक नहीं सिखाना चाहिए था?”
भारत और पाकिस्तान की सैन्य और आर्थिक स्थिति की तुलना ही नहीं की जा सकती।
भारत का रक्षा बजट पाकिस्तान से 9 गुना ज्यादा है। भारत के पास अत्याधुनिक मिसाइल रक्षा प्रणाली और उपग्रह है। भारत की अर्थव्यवस्था 2027 तक तीसरी सबसे बड़ी वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है, जबकि पाकिस्तान अपने रोजमर्रा के खर्च के लिए भी आईएमएफ के बेलआउट पर निर्भर है। पाकिस्तान में लोकतंत्र नाम मात्र का है। वहां सेना ही असली सत्ता केंद्र है।
सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर जैसे अधिकारी खुलेआम सांप्रदायिक बयानबाज़ी करते हैं वहीं भारत में लोकतंत्र मज़बूत है। यहां सरकारें जनता की इच्छा से बनती और गिरती हैं।
सवाल पूछना यहां अधिकार है और यही वजह है कि सीजफायर पर भी भारतीय नागरिक बहस कर रहे हैं। सीजफायर को लेकर पाकिस्तान भले ही जश्न मना रहा हो, लेकिन यह जश्न आभासी है भ्रमजाल में बंधा हुआ।