जिलाधिकारी की सक्रियता से हुआ 1996 से लंबित प्रकरण का समाधान, 29 साल बाद मिली जीपीएफ की राशि
Kanpur । लगभग तीन दशक की लंबी जद्दोजहद, धैर्य और उम्मीद के बाद सेवानिवृत्त संग्रह सेवक सुदामा प्रसाद को आखिरकार उनकी मेहनत की कमाई मिल गई। जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह की सक्रिय पहल और लगातार निगरानी के चलते सामान्य भविष्य निधि का वह भुगतान संभव हुआ, जो वर्ष 1996 से अटका था। आखिरकार ब्याज सहित तीन लाख सात हजार रुपये सुदामा के खाते में पहुंच गए।
फरवरी की एक सुबह जिलाधिकारी कार्यालय में जनता दर्शन चल रहा था। अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे लोगों की भीड़ में एक बुज़ुर्ग भी खड़े थे। साधारण पैंट-शर्ट पहने, हाथ में पुरानी फाइल और थैला थामे, चेहरे पर धैर्य और आंखों में उम्मीद की चमक। यह थे 89 वर्षीय सुदामा प्रसाद, जो उनतीस वर्षों से अपनी मेहनत की पाई-पाई पाने के लिए दर-दर भटक रहे थे।
कितने ही दफ्तरों के चक्कर, कितनी ही बार फाइलें चलीं और लौटीं, अधिकारी बदलते गए, नियमावली के पन्ने पलटते रहे लेकिन मेहनत की कमाई तक पहुंच नहीं बन सकी। खास बात यह रही कि उन्होंने कभी न्यायालय का दरवाज़ा नहीं खटखटाया, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था पर भरोसा बनाए रखा।
प्रकरण की जड़ सेवानिवृत्ति अभिलेखों में छूटे एक महत्वपूर्ण तथ्य में छिपी थी। पारिवारिक न्यायालय बांदा ने सुदामा को पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था, लेकिन 1995 में उनकी पत्नी का निधन हो चुका था। यह जानकारी अभिलेखों में दर्ज न हो पाने से भुगतान वर्षों तक थमा रहा।
जनता दर्शन में जब उन्होंने जिलाधिकारी के सामने अपनी व्यथा रखी तो जिलाधिकारी ने तुरंत गंभीरता से सुनवाई की। वर्षों पुरानी फाइलें मंगाई गईं, रिकॉर्ड खंगाला गया। डीएम ने निर्देश दिया कि अब इस मामले में और देरी नहीं होनी चाहिए। जनपद बांदा से आवश्यक अभिलेख मंगाए गए।
इसके बाद कोषाधिकारी ने रिपोर्ट दी कि खाते में जमा राशि पर चालू वित्तीय वर्ष तक ब्याज जोड़कर पूरा भुगतान अनुमन्य है और अब तक कोई आंशिक भुगतान भी नहीं हुआ है। इसके बाद उपजिलाधिकारी सदर की जांच रिपोर्ट में ब्याज सहित तीन लाख सात हजार रुपये देय पाए गए।
सामान्य भविष्य निधि नियमावली 1985 के तहत आदेश जारी हुए और जिलाधिकारी ने प्रगति पर स्वयं नज़र रखी। आखिरकार 18 अगस्त को वह दिन आया जब भुगतान सुदामा प्रसाद खाते में पहुंच गया। लगभग तीस साल की प्रतीक्षा और संघर्ष के बाद उन्हें अपनी मेहनत का हक मिला।
राशि खाते में आने की ख़बर मिलते ही उनकी आंखें नम हो गईं लेकिन होंठों पर सुकून की मुस्कान थी। उन्होंने जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह और अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व विवेक चतुर्वेदी का आभार व्यक्त करते हुए बस इतना कहा कि देर है, पर अंधेर नहीं। उन्होंने कहा कि उनके लिए यह रकम केवल पैसे भर नहीं थी, बल्कि आत्मसम्मान और विश्वास की वापसी है।