Kanpur । कानपुर नगर के मुख्य चिकित्साधिकारी (सीएमओ) डा. हरी दत्त नेमी का निलंबन रद्द होना और उनका पुनः सीएमओ पद पर बहाल होना एक ऐसी घटना है, जो न केवल प्रशासनिक निर्णयों की जटिलता को उजागर करती है, बल्कि न्यायिक हस्तक्षेप की महत्ता को भी रेखांकित करती है।
यह घटनाक्रम इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच के एक महत्वपूर्ण आदेश के परिणामस्वरूप सामने आया, जिसने शासन को अपने पूर्व में जारी निलंबन आदेश को वापस लेने के लिए मजबूर किया। इस लेख में इस पूरे घटनाक्रम का उल्लेख करते हुए डा. नेमी के साहस, धैर्य और प्रशासनिक कुशलता पर प्रकाश डाला जाएगा।
घटनाक्रम की शुरुआत
डा. हरी दत्त नेमी कानपुर नगर के स्वास्थ्य सेवाओं के संचालन के लिए जिम्मेदार एक महत्वपूर्ण अधिकारी थे। उनकी यह यात्रा तब विवादों में घिरी जब उनके और कानपुर के जिलाधिकारी (डीएम) जितेंद्र प्रताप सिंह के बीच तनाव बढ़ने की खबरें सामने आईं। यह तनाव विभिन्न मुद्दों पर असहमति के कारण उत्पन्न हुआ, जिसमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत भर्ती प्रक्रिया में कथित अनियमितताएं और वित्तीय प्रबंधन से संबंधित आरोप शामिल थे। इसी के परिणामस्वरूप, शासन ने 19 जून, 2025 को डा. नेमी को निलंबित करने का आदेश जारी किया।
कानूनी लड़ाई और न्यायिक हस्तक्षेप
निलंबन के इस आदेश को डा. नेमी ने चुपचाप स्वीकार नहीं किया। उन्होंने इस निर्णय के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दायर की और निलंबन की वैधानिकता को चुनौती दी। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि निलंबन का यह आदेश प्रथम दृष्टया उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन और अपील) नियम, 1999 के उल्लंघन में था। कोर्ट ने यह तर्क दिया कि निलंबन से पहले कोई औपचारिक जांच नहीं की गई, जो कि नियमों के तहत एक अनिवार्य प्रक्रिया है। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने निलंबन पर अंतरिम रोक लगा दी और शासन को चार सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
शासन की प्रतिक्रिया और बहाली
हाई कोर्ट के इस स्पष्ट हस्तक्षेप के सामने शासन के पास कोई विकल्प नहीं बचा। नतीजतन, निलंबन आदेश को रद्द कर दिया गया और डा. नेमी को कानपुर नगर के सीएमओ पद पर पुनर्बहाल कर दिया गया। यह न केवल डा. नेमी की व्यक्तिगत जीत थी, बल्कि यह भी दर्शाता है कि प्रशासनिक निर्णयों को कानूनी कसौटी पर खरा उतरना पड़ता है।
इस पूरे घटनाक्रम में डा. नेमी ने असाधारण साहस और धैर्य का परिचय दिया। जहां कई लोग इस तरह के दबाव में टूट सकते थे या सार्वजनिक विवाद में उलझ सकते थे, वहीं डा. नेमी ने कानूनी रास्ता चुना। यह उनके न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास और उनकी रणनीतिक सोच को दर्शाता है।
इसके अलावा, उनकी प्रशासनिक कुशलता इस बात से झलकती है कि उन्होंने अपने पद की गरिमा को बनाए रखते हुए इस संकट का सामना किया। उनकी यह दृढ़ता और संयम न केवल उनके व्यक्तित्व की मजबूती को दर्शाता है, बल्कि अन्य अधिकारियों के लिए भी एक प्रेरणा है।
डा. नेमी का यह मामला उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक प्रथाओं के लिए एक सबक है। यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि निलंबन जैसे अनुशासनात्मक कदम उठाने से पहले उचित प्रक्रिया और कानूनी नियमों का पालन करना आवश्यक है।
साथ ही, यह न्यायपालिका की उस भूमिका को भी रेखांकित करता है, जो मनमाने प्रशासनिक निर्णयों पर अंकुश लगाकर न्याय सुनिश्चित करती है। भविष्य में सरकारी अधिकारियों के निलंबन से संबंधित निर्णयों पर इस मामले का प्रभाव पड़ सकता है, जो पारदर्शिता और विधिक प्रक्रिया के महत्व को और मजबूत करेगा।
डा. हरी दत्त नेमी की कानपुर नगर के सीएमओ के रूप में बहाली उनके साहस, धैर्य और प्रशासनिक कुशलता का एक जीवंत प्रमाण है। यह घटनाक्रम न केवल उनकी व्यक्तिगत जीत को दर्शाता है, बल्कि यह भी साबित करता है कि विधि का शासन और उचित प्रक्रिया प्रशासनिक कार्यवाहियों का आधार होनी चाहिए।
यह प्रकरण आने वाले समय में अधिकारियों और शासन के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करेगा, जो यह सुनिश्चित करेगा कि प्रशासनिक निर्णय निष्पक्षता और कानूनीता के दायरे में ही लिए जाएं।