Jhansi। झांसी की सबसे बड़ी पहचान वीरांगना लक्ष्मीबाई से है। उनकी बहादुरी के चर्चे आज भी होते हैं। भले रानी लक्ष्मीबाई इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन झांसी में वीरांगनाओं की कमी नहीं है। इसकी बानगी अस्पताल में लगी आग के दौरान देखी गई। जहां नर्स मेघा जेम्स ड्यूटी पर थीं। अस्पताल के नवजात शिशु चिकित्सा इकाई में अचानक आग लगने पर जहां एक तरफ अफरा-तफरी मची थी वहीं मेघा ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अन्य स्टाफकर्मियों की मदद से करीब 15 बच्चों को बचाने में सफलता हासिल की।जेम्स केवल और केवल बच्चों की जान बचाना चाहती थी और इस दौरान उसने खुद के जलने परवाह तक नहीं की। बच्चों को बचाते वक्त मेघा के कपड़ों का एक हिस्सा जल गया लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। मेघा ने घटना का जिक्र करते हुए कहा, मैं एक बच्चे को टीका लगाने के लिए सिरिंज लेने गई थी। जब मैं वापस आई तो मैंने देखा कि (ऑक्सीजन) कंसंट्रेटर में आग लगी हुई थी।
मैंने वार्ड बॉय को बुलाया। वह आग बुझाने वाले यंत्र को लाया और आग बुझाने की कोशिश की लेकिन तब तक आग फैल चुकी थी।उन्होंने को बताया, मेरी चप्पल में आग लग गई और मेरा पैर जल गया। फिर मेरी सलवार में आग लग गई। मैंने अपनी सलवार उतार दी और उसे फेंक दिया। उस समय, मेरा दिमाग लगभग काम नहीं कर रहा था, जेम्स ने बस एक और सलवार पहनी और बचाव अभियान में वापस चली गई। उन्होंने कहा, बहुत धुआं था, और एक बार जब रोशनी चली गई, तो हम कुछ भी नहीं देख पाए। पूरे स्टाफ ने कम से कम 14-15 बच्चों को बाहर निकाला। वार्ड में 11 बेड थे जिन पर 23-24 बच्चे थे। अगर रोशनी नहीं बुझी होती तो वह और बच्चों को बचा सकते थे। यह सब बहुत अचानक हुआ। हममें से किसी ने इसकी उम्मीद नहीं की थी।
सहायक नर्सिंग अधीक्षक नलिनी सूद ने जेम्स की बहादुरी की प्रशंसा की। उन्होंने बताया, “अस्पताल के कर्मचारियों ने बच्चों को बाहर निकालने के लिए एनआईसीयू वार्ड के शीशे तोड़ दिए। इस बीच नर्स मेघा के कपड़ों में आग लग गई लेकिन इससे विचलित हुए बगैर वह बच्चों को बचाने के लिए डटी रहीं।” सूद ने बताया कि मेघा का अभी उसी अस्पताल में इलाज किया जा रहा है। नर्सिंग अधीक्षक ने बताया कि उन्हें नहीं पता कि वह (मेघा) आग में कितनी बुरी तरह झुलसी हैं।
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